News: विश्व भर में कोरोना महामारी की वजह से काफी जाने गई, काफी लोग संक्रमित हुए, देश की अर्थव्यवस्थाओं को बहुत ही ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन इसी बीच एक ऐसी चीज हुई जो कि बहुत ही अच्छी है वह यह कि इस कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए लॉक डाउन ने जैसे जिंदगी की गतिविधियों को थाम सा दिया। जिसका असर दिखा हमारी पृथ्वी पर। धरती मां को आखिरकार वह ब्रेक मिल ही गया जिससे उसे कबसे जरूरत थी। इंसान अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने स्वार्थ के लिए ना जाने पृथ्वी को कितनी यातनाएं देता है। दिन रात चल रही गाड़ियों से निकलते हुए धुएं ने जैसे धरती का दम ही घोंट दिया हो। दुनिया के कई हिस्सों में लॉक डाउन की वजह से ना सिर्फ शहरों की खूबसूरती बढ़ी है बल्कि धरती पर होने वाले कंपन भी कम हो गए हैं।
दुनिया के कई शहरों में ऐसी खबरें आने लगी है जहां हर तरह के प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में काफी कमी देखी गई। एक और जहां हर दिन कोरोना के नए पॉजिटिव केस सामने आने लगे, देश की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी, वहीं दूसरी ओर इस मौके पर प्रकृति को जबर्दस्त फायदा हुआ और वह अपनी मरम्मत करती दिखाई दी।
धरती के कंपन में आई कमी
खबर आ रही है कि बेल्जियम के रॉयल ऑब्जर्वेटरी के विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया भर के कई हिस्से ऐसे हैं जहां लॉक डाउन की वजह से धरती की ऊपरी सतह पर होने वाले कंपन में बहुत ज्यादा कमी आई है। सीस्मोलॉजिस्ट बताते हैं कि इस लॉक डाउन के समय में उन्होंने सीस्मिक नॉइस एवं कंपन में काफी कमी देखी है। बता दें कि सीस्मिक नॉइज उस शोर को कहते हैं जो धरती की बाहरी सतह यानी कि क्रस्ट पर होने वाले कंपन के कारण धरती के अंदर एक शोर के रूप में सुनाई पड़ता है। इस शोर को मापने के लिए खोजकर्ता और भूविज्ञानी एक तरह का डिटेक्टर की रीडिंग का इस्तेमाल करते हैं जो धरती की सतह से 100 मीटर की गहराई में गाड़ा जाता है। लेकिन लॉक डाउन के समय में धरती पर होने वाली गतिविधियों में काफी कमी आई है इस वजह से इस साउंड की गणना सतह पर ही हो पा रही है।
असल में देखा जाए तो भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएं धरती के बाहरी सतह में जैसी हरकतें होती है वैसी ही हलचलें थोड़े कम लेवल पर धरती की सतह पर होती है। धरती की सतह पर होने वाली हरकतों में मशीनों का चलना, रेल यातायात, निर्माण कार्य, वाहनों की आवाजाही, जमीन में ड्रिलिंग, जैसी मानव गतिविधियां शामिल है। लॉक डाउन के कारण इन सभी मानवीय गतिविधियों में बहुत ज्यादा कमी आई है इसकी वजह से धरती के आंतरिक कंपनो पर भी इसका असर पड़ा है।
इन्हीं कम्पनों को दर्ज करके वैज्ञानिक धरती के बारे में अन्य जानकारी ढूंढते हैं। और आने वाले भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट के बारे में भी जानने की कोशिश करते हैं। अब तक की रिसर्च से पता चला है कि कम्पनों में इसी तरह की कमी साल भर के उस समय में देखी जाती है जब लंबी छुट्टियां चल रही होती हैं।
ब्रसेल्स शहर जो कि बेल्जियम का एक शहर है अगर उसी को उदाहरण के रूप में देखें तो मार्च के मध्य से लागू लॉक डाउन की वजह से अब तक वहां आने वाले भूकंप में 30 से 50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। साइंटिस्ट ने ऐसी ही तरह की कमी पेरिस, लंदन, लॉस एंजेल्स के सभी बड़े शहरों में भी देखी है।
इस लॉक डाउन की वजह से एक अच्छी चीज यह हुई है की पृथ्वी को अपनी मरम्मत करने के लिए काफी समय मिल गया। एवं इसका नतीजा यह हुआ कि अब नीले आसमान और दूर से दिखाई देते पहाड़ जैसे मानो मानव का शुक्रिया कर रहे हैं।
हाल ही में पंजाब के जालंधर में रहने वाले लोगों ने अभी कुछ दिन पहले ही कुछ ऐसी तस्वीरें साझा की थी जिसमें बताया जा रहा था कि जालंधर से हिमाचल की दौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिखाई पड़ रही थी।
हाल ही में पंजाब के जालंधर में रहने वाले लोगों ने अभी कुछ दिन पहले ही कुछ ऐसी तस्वीरें साझा की थी जिसमें बताया जा रहा था कि जालंधर से हिमाचल की दौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिखाई पड़ रही थी।
धरती को मिलता रहे सालाना ब्रेक
बीते 1 महीने में प्रदूषण का स्तर बहुत कम हो जाने की वजह से आसमान एकदम साफ दिख रहा है एवं दिल्ली एनसीआर इलाके की तस्वीरें भी फेसबुक जैसी सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है।
यमुना नदी जो कि दिल्ली से होकर बहती है उसमें इतना ज्यादा साफ पानी देखकर लोग भी खुद हैरान है बता दें कि इस नदी को साफ करने की कोशिश न जाने कितने सालों से अलग-अलग सरकारें करती आ रही है न जाने कितनी योजनाएं एवं समितियां बनाई गई काफी पैसा खर्च किया गया लेकिन जो नतीजे लॉक डाउन की वजह से नदी पर दिख रहे हैं वह पहले कभी नहीं दिखे।
यमुना नदी जो कि दिल्ली से होकर बहती है उसमें इतना ज्यादा साफ पानी देखकर लोग भी खुद हैरान है बता दें कि इस नदी को साफ करने की कोशिश न जाने कितने सालों से अलग-अलग सरकारें करती आ रही है न जाने कितनी योजनाएं एवं समितियां बनाई गई काफी पैसा खर्च किया गया लेकिन जो नतीजे लॉक डाउन की वजह से नदी पर दिख रहे हैं वह पहले कभी नहीं दिखे।
दुनिया भर में अलग-अलग हिस्सों से लोगों ने अपने अपनी सरकारों को सुझाव दिया है कि वह कोरोना महामारी से निपटने के बाद भी हर साल कुछ दिन इसी तरह का ब्रेक दें ताकि प्रकृति को फिर से जीवित होने का अवसर मिलता रहे।
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