News: कोरोना महामारी की वजह से हर देश परेशान है क्योंकि इस महामारी के लिए अभी तक कोई टीका या दवाई नहीं बनी है। इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग ही इसका एकमात्र हल है। दुनिया भर में देश इस बीमारी से बचने के लिए लॉक डाउन का सहारा ले रहे हैं। लेकिन इस लॉक डाउन में अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। हर व्यक्ति को लॉक डाउन की वजह से नुकसान ही भोगना पड़ रहा है। ऐसे में एक चीज ऐसी भी है जिसे लॉक डाउन ने जैसे संजीवनी देदी हो। वह है हमारी प्रकृति। चाहे आज हर इंसान लॉक डाउन से परेशान है लेकिन प्रकृति, पेड़-पौधे, जीव-जंतु अब राहत की सांस ले रहे हैं। और मानो उन्हें संजीवनी बूटी ही मिल गई हो। अप्रैल की शुरुआत में कुछ वैज्ञानिकों ने उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर में एक छेद देखा था। जो कि 10 लाख वर्ग किलोमीटर का था। यह छेद इतिहास का सबसे बड़ा छेद था ओजोन लेयर में। बता दें कि लॉक डाउन की वजह से प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया है और परिणाम यह हुआ कि यह छेद भर गया है जो कि हम सबके लिए एक बहुत ही बड़ी खुशखबरी है।
हमारी धरती के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत स्थित है इससे पहले भी लॉक डालने दक्षिणी ध्रुव के ओजोन परत में छेद का कार्यक्रम किया था वैज्ञानिकों ने अप्रैल महीने की शुरुआत में उत्तरी ध्रुव में स्थित ओजोन परत पर एक बहुत बड़ा क्षेत्र देखा था और वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि इतिहास का सबसे बड़ा छेद है जिसका आकार 10 लाख वर्ग किलोमीटर का है।
नॉर्थ पोल जाने की उत्तरी ध्रुव पर धरती का आर्थिक वाला इलाका आता है इस इलाके के ऊपर बहुत ही ताकतवर पोलर वोर्टेक्स बने हुए हैं जो अब खत्म हो चुके हैं नॉर्थ पोल के बहुत ऊपर स्थित स्ट्रेटोस्फीयर पर बादल बनने की वजह से ओजोन परत काफी ज्यादा पतली हो गई थी।
ओजोन परत में छेद को कम करने के पीछे तीन चीजें काफी आड़े आ रही थी। इनमें से सबसे पहला है बादल का बनना, क्लोरोफ्लोरोकार्बंस और हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बंस। यह तीनों चीजें स्ट्रेटोस्फीयर में काफी बढ़ गई थी जिसकी वजह से सूरज की किरने यानी की अल्ट्रावायलेट किरणें जब स्ट्रेटोस्फीयर पर टकराती है तो उनसे क्लोरीन एवम् ब्रोमीन के एटम निकलते हैं। और यही एटम ओजोन छेद को बहुत बड़ा करते थे। प्रदूषण एक बहुत ही बड़ा कारण है जो कि लोगों में काफी हद तक कम हुआ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार की स्थिति आमतौर पर साउथ पोल यानी कि दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका के ऊपर देखने को मिलती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ ओजोन लेयर में छेद बहुत कम दिखाई दे रहा था।
जानकारी के लिए बता दें कि स्ट्रेटोस्फीयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है। एवं इसी के बीच ओजोन लेयर भी पाई जाती है जो कि धरती पर जीवन को सूरज के अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है।
हर वर्ष देखा जाता है कि बसंत ऋतु में साउथ फूल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर लगभग 70% तक गायब हो जाती है एवं कुछ जगह पर तो या परत बचती ही नहीं लेकिन उत्तरी दू पर ऐसा नहीं होगा लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब यह क्षेत्र इतना बड़ा दिखाई दिया।
ओजोन परत का अध्ययन करने वाले कॉपरनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के डायरेक्टर विंसेंट हेनरी पीयुच ने कहा है कि यह कम तापमान एवं सूर्य की किरणों के टकराव के बाद जो केमिकल रिएक्शन हुई उसी का ही नतीजा है। उनका कहना है कि हम सभी को मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि हम जितना हो सके प्रदूषण के स्तर को कम करें क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब ओजोन में इतना बड़ा छेद देखा गया था लेकिन आखिरकार हमने क्लोरीन एवम् ब्रोमीन का स्तर कम किया और ओजोन लेयर का छेद भर गया। यह सब हुआ सिर्फ और सिर्फ लॉक डाउन की वजह से।
विंसेंट ने उम्मीद जताई है कि ओजोन लेयर में यह छेद और ज्यादा भरने लगेगा। और यह मौसम के साथ संभव है। इस समय हमें 1987 के हुए मॉन्ट्रियल समझौते को अमल में लाना चाहिए। इसके लिए हमें सबसे पहले चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को किसी भी हाल में कम करना होगा।
हमारी धरती के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत स्थित है इससे पहले भी लॉक डालने दक्षिणी ध्रुव के ओजोन परत में छेद का कार्यक्रम किया था वैज्ञानिकों ने अप्रैल महीने की शुरुआत में उत्तरी ध्रुव में स्थित ओजोन परत पर एक बहुत बड़ा क्षेत्र देखा था और वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि इतिहास का सबसे बड़ा छेद है जिसका आकार 10 लाख वर्ग किलोमीटर का है।
नॉर्थ पोल जाने की उत्तरी ध्रुव पर धरती का आर्थिक वाला इलाका आता है इस इलाके के ऊपर बहुत ही ताकतवर पोलर वोर्टेक्स बने हुए हैं जो अब खत्म हो चुके हैं नॉर्थ पोल के बहुत ऊपर स्थित स्ट्रेटोस्फीयर पर बादल बनने की वजह से ओजोन परत काफी ज्यादा पतली हो गई थी।
ओजोन परत में छेद को कम करने के पीछे तीन चीजें काफी आड़े आ रही थी। इनमें से सबसे पहला है बादल का बनना, क्लोरोफ्लोरोकार्बंस और हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बंस। यह तीनों चीजें स्ट्रेटोस्फीयर में काफी बढ़ गई थी जिसकी वजह से सूरज की किरने यानी की अल्ट्रावायलेट किरणें जब स्ट्रेटोस्फीयर पर टकराती है तो उनसे क्लोरीन एवम् ब्रोमीन के एटम निकलते हैं। और यही एटम ओजोन छेद को बहुत बड़ा करते थे। प्रदूषण एक बहुत ही बड़ा कारण है जो कि लोगों में काफी हद तक कम हुआ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार की स्थिति आमतौर पर साउथ पोल यानी कि दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका के ऊपर देखने को मिलती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ ओजोन लेयर में छेद बहुत कम दिखाई दे रहा था।
जानकारी के लिए बता दें कि स्ट्रेटोस्फीयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है। एवं इसी के बीच ओजोन लेयर भी पाई जाती है जो कि धरती पर जीवन को सूरज के अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है।
हर वर्ष देखा जाता है कि बसंत ऋतु में साउथ फूल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर लगभग 70% तक गायब हो जाती है एवं कुछ जगह पर तो या परत बचती ही नहीं लेकिन उत्तरी दू पर ऐसा नहीं होगा लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब यह क्षेत्र इतना बड़ा दिखाई दिया।
ओजोन परत का अध्ययन करने वाले कॉपरनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के डायरेक्टर विंसेंट हेनरी पीयुच ने कहा है कि यह कम तापमान एवं सूर्य की किरणों के टकराव के बाद जो केमिकल रिएक्शन हुई उसी का ही नतीजा है। उनका कहना है कि हम सभी को मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि हम जितना हो सके प्रदूषण के स्तर को कम करें क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब ओजोन में इतना बड़ा छेद देखा गया था लेकिन आखिरकार हमने क्लोरीन एवम् ब्रोमीन का स्तर कम किया और ओजोन लेयर का छेद भर गया। यह सब हुआ सिर्फ और सिर्फ लॉक डाउन की वजह से।
विंसेंट ने उम्मीद जताई है कि ओजोन लेयर में यह छेद और ज्यादा भरने लगेगा। और यह मौसम के साथ संभव है। इस समय हमें 1987 के हुए मॉन्ट्रियल समझौते को अमल में लाना चाहिए। इसके लिए हमें सबसे पहले चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को किसी भी हाल में कम करना होगा।
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