ओपेक यानी की तेल उत्पादक देशों का समूह। खबर आ रही है कि वैश्विक स्तर पर फैल रहे कोरोना संक्रमण के बीच इन तेल उत्पादक देशों के समूह और उनके सहयोगी देश रूस में तेल के उत्पादन में कटौती करने पर राजी होने से हर तरफ मुश्किल हालात हो गए हैं। तेल उत्पादक देशों के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि तेल का उत्पादन बढ़ा है लेकिन वहीं दूसरी ओर तेल की मांग में भारी गिरावट देखी जा रही है। ऐसी स्थिति में तेल को रखने के लिए भंडारण की जगह कम पड़ती नजर आ रही है।
विश्व में कई देश कोरोना संक्रमण से भारी प्रभावित हुए हैं। संक्रमण के फैलने से कुछ देशों में तो पूर्ण लॉक डाउन कर दिया गया है। इन देशों में भारत, अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे देश शामिल हैं जिनमें तेल की मांग में बहुत ज्यादा गिरावट देखी गई है। इन हालातों के चलते जनवरी से लेकर अब तक कच्चे तेल के दामों में 60% से भी ज्यादा कमी आई है। अगर हम 1 साल पहले की बात करें तो इसकी तुलना में रोजाना कच्चे तेल की मांग घट कर दो करोड़ बैरल हो गई है। इसका फायदा भारत से दुनिया के सबसे बड़े आयातक देश के रूप में देखने को मिला लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे या खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहेगी।
कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों की जो सबसे बड़ी परेशानी है वह यह है कि उनके पास भंडारण के लिए ज्यादा जगह उपलब्ध नहीं है। इनमें दुनिया के 3 सबसे बड़े कच्चे तेल के उत्पादक देश भी शामिल है जो है सऊदी अरब अमरीका और रूस। अगर इन तीनों में तुलना करें तो रूस की भंडारण क्षमता केवल एक हफ्ते की है वहीं दूसरी और सऊदी अरब अपने लिए केवल 18 दिन का भंडार रखता है तथा अमेरिका 1 माह के तेल भंडारण की क्षमता रखता है।
कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों की जो सबसे बड़ी परेशानी है वह यह है कि उनके पास भंडारण के लिए ज्यादा जगह उपलब्ध नहीं है। इनमें दुनिया के 3 सबसे बड़े कच्चे तेल के उत्पादक देश भी शामिल है जो है सऊदी अरब अमरीका और रूस। अगर इन तीनों में तुलना करें तो रूस की भंडारण क्षमता केवल एक हफ्ते की है वहीं दूसरी और सऊदी अरब अपने लिए केवल 18 दिन का भंडार रखता है तथा अमेरिका 1 माह के तेल भंडारण की क्षमता रखता है।
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